Thursday, February 21, 2008

शब्द संगीत...


किसी ने कहा है- 'रंगमंच की शुरुआत, शायद किसी आदमी के पहली बार, कविता पढने से ही हुई होगी।'

फाँक्नर ने कहीं लिखा है कि- 'हर लेखक शुरु में कविताएँ लिखने की कोशिश करता है, जब वो उसमें असफल होता है, तो कहानियाँ लिखता है, उसमें असफल होने पर उपन्यास...।'
मुझे एसा लगता है... हर आदमी अपने जीवन की पहली कविता, अपने पहले प्रेम की तरह- अंत तक याद रखता है।

अब इसमें ये प्रश्न भी पूछा जाता है कि- 'कविता क्या है?' ये पूछना वैसा ही है, जैसे ये पूछना कि संगीत क्या है।...अपने पूरे एकांत में हम जैसा संगीत सुनने की इच्छा रखते हैं.... शायद वो ही हमारा संगीत हैं... और वैसी ही कविता।

'कहने की आज़ादी'- होने के बावजूद भी...'कुछ जिया हुआ'.. 'महसूस किया हुआ'- जो हमारे लिए बहुत मह्त्वपूर्ण होता है... पर हम उसे किसी से कभी कह नहीं पाते...कविता शायद ऎसे ही एकांत को 'शब्द' देती है।

2 comments:

Anonymous said...

I love this introduction..just beautifully sets the experience of poetry. And faulkener's quote..

VIMAL VERMA said...

आपके यहां पहली बार आना हुआ,कुछ अलग सा लगा अनुभव... लिखते रहें.आपने को और ज़्यादा जानने का माध्यम ही तो है ये ब्लॉग,अपने अच्छे कड़वे एहसास लिखते रहें शायद....कुछ बात बने..लिखते रहें

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मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल