Monday, January 13, 2014

साथी.....

एक मधुर स्वर वाली चिड़िया बाल्कनी में आई...। वह बहुत शर्मीली है... उसे देखने के लिए सिर घुमाता हूँ तो वह दूसरी बाल्कनी में चली जाती है...। मैं चाय बनाने के बहाने जब दूसरी बाल्कनी के पास गया तो वह दिख गई... गहरी काले रंग की... लाल रंग की नोक अपने माथे पर चढ़ाए हुए...। मेरी सुबह मुस्कुराहट से फैल गई। मैं बहुत हल्के कदमों से बाल्कनी के कोने में खड़ा हो गया... सूरज मेरे चहरे पर सुन्हेरा रंग उड़ेल रहा था। मैं उस चिड़िया को अपना सपना सुनाने लगा... कल रात के कुछ डर मैं उस सपने में छुपाना चाहता था... पर वह सूरज की रोशनी में चीनी में लगी चींटियों की तरह बाहर आने लगे...। आजकल मेरी दोस्ती कूंए में पल रहे कछुए से बहुत बढ़ गई हैं...। उसका नाम मैंने ’साथी’ रखा है... अपने चुप धूमने में मैं जब ’सुपर मिल्क सेंटर’ चाय पीने जाता हूँ तो कुछ आत्मीय संवाद अपने साथी से कर लेता हूँ। मैंने साथी को अपने सपनों के बारे में कभी नहीं बताया... मुझे डर है कि वह एक दिन कुंआ छोड़कर चला जाएगा....। सपनों के सांझी कुछ समय में चले जाते हैं...। मैं उससे दैनिक दिनचर्या कहता हूँ... उसे आश्चर्य होता है कि मैं कितना उसके जैसा जीता हूँ...। मैंने उससे कहा है कि मेरा भी एक कुंआ है... कुछ देर ऊपर रहने पर मैं भी भीतर गोता लगा लेता हूँ और बहुत समय तक किसी को नहीं दिखता...। भीतर हम दोनों क्या करते हैं इस बात की चर्चा हम दोनों एक दूसरे से नहीं करते हैं...। साथी कभी-कभी मेरे कुंए की बात पूछता है... मेरे पास अपने कुंए के बारे में बहुत कुछ कहने को नहीं होता... अकेलपन की बात उससे कहना चाहता हूँ पर उससे अकेलापन कैसे कह सकता हूँ...? सो मैं एक वाचमैन के बारे में बात करता हूँ जो मेरा क्रिकेट दोस्त है... उससे मैं क्रिकेट की बात करता हूँ.... बाहर ’सुपर मिल्क सेंटर’ पर एक लड़का है जो मेरे लिए चाय लाता है... वह अभी-अभी दोस्त हो चला है... पता नहीं क्यों वह मुझसे अंग्रेज़ी में बात करना चाहता है... थेंक्यु और नाट मेनशन वह कहीं भी बीच संवाद में कह देता है...। फिर एक गोलगप्पे वाला भी है जो एक लड़की को पसंद करता है... वह उस लड़की से गोलगप्पे के पैसे नहीं लेता... वह अगर अपनी सहेलियों के साथ आती है तब वह उसकी सहलीयों से भी पैसे नहीं लेता...। जब वह लड़की गोलगप्पे खा रही होती है तो उसकी गोलगप्पे बनाने की सरलता... लड़खड़ा जाती है...। लड़की गोलगप्पे खाते हुए बहुत खिलखिलाकर हंसती है.... जब जाती है तो दूर जाते हुए एक बार पलटकर गोलप्पे वाले लड़के को देख लेती है... वह खुश हो जाता है। साथी बार-बार मुझसे उस गोलगप्पे वाले लड़के के बारे में पूछता है... क्या हुआ उसका उस लड़के के साथ। मैं उससे कहता हूँ कि असल में मैं इसके बाद की कहानी जानना नहीं चाहता हूँ... यह ठीक इस वक़्त तक इतनी खूबसूरत है... कि मैं खुद भीतर गुदगुदी महसूस करता हूँ.. पर ठीक इसके बाद क्या होगा? इसपर मेरे भीतर के डर धूप में चीनी के डब्बे मे पड़ गई चींटियों की तरह बाहर आने लगते हैं...। साथी कहता है कि तुम बहुत डरपोक हो... मैं कहता हूँ... मैं हूँ...। साथी से संवाद ख़त्म करके जब भी मैं सुपर मिल्क सेंटर की तरफ जाता हूँ तो भीतर एक गिजगिचापन महसूस करता हूँ....। मैं अपने इतने सुंदर साथी से भी वही टूटी हुई बिख़री हुई बातें करता हूँ...। फिर तय करता हूँ कि एक किसी नए सुंदर दोस्त से मिलूंगा... उसे उसके बारे में बताऊंगा... ओह! उसे मैंने अपनी बाल्कनी पर आई चिड़िया के बारे में भी नहीं बताया है... अचानक मुझे मेरे अकेलेपन के बहुत सारे छोटे-छोटे दोस्त दिखने लगे... ओह अभी तो ओर भी कितना है... कितना सारा है जिसे मैं कह सकता हूँ...। जैसे बोबो के बारे में...। बोबो की आँखें... उसकी पवित्रता...(पवित्र शब्द कितना दूर लगता है मुझसे.. इस शब्द के लिखने में भी मेरी उंग्लियां लड़खड़ा जाती हैं।) मैं बोबो के बारे में साथी से कहूंगा.... कहूंगा कि वह बोबो है जो मुझे मेरे छुपे में तलाश लेता है...। आज की सुबह बहुत पवित्र लग रही है... आज की सुबह...