Tuesday, February 12, 2008

अपने से...




'नया जीना है, भीतर से इच्छा काफ़ी तेज़ हैं... पर पुरान कचरा इतना भरा पड़ा है, कि उसे बुहारने में इतना समय खर्च हो जाता है कि जब कमरा साफ़ हो जाता है तो जीना भूल जाता हूँ।'


'सर्दियाँ उन सभी बातों की ठंड़ करीब लाती है, जिन बातों को भुलाने के लिये मैंने पसीने बहाएं हैं।'

'मैं कभी-कभी उस वजह के बारे में सोचता हूँ जिसकी वजह से हम बाहर चले जाते है। अपने से, घर से, शहर से...। शायद हम अपने को ही.. खुद को ही थोडा दूर जाकर देखने की कोशिश कर रहे होते हैं'

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