यूं तो मैं निर्मल वर्मा की हर रचना पर कुछ लिखना चाहता हूँ... पर अभी-अभी पढ़ी उनकी कहानी ’बुखार...’ पढ़ी, इच्छा हुई कि यूं ही कुछ इसके बारे में लिखू...।
इतनी सरलता से यह कहानी खिसकते-खिसकते भीतर ऎसी जगह जाकर बैठ जाती है कि आपको लगता है कि आप कोई बहुत ही खूबसूरत सिनेमा देख रहे हैं जो आप ही की यादों को मिला जुलाकर बना है। बातों की इतनी छोटी-छोटी छवीयाँ बनती है कि वह मिलकर एक गाँव, एक शहर... हनुमान का मंदिर, रेल्वे स्टेशन... सब कुछ बना देती है। आप पेंट और शर्ट पहनकर धूमते हुए निर्मल जी को हर तरफ देख सकते हैं। पूरे चित्र में एक पीलापन दिखाई देता है... उदासी, थकान के परे.. कुछ आपके सपनों सा आलोक लिए। कहानी कुछ ऎसा सपना सा जान पड़ती है जिसे आप खत्म होते नहीं देखना चाहते हो। कहानी का एक हिस्सा पढ़ती ही उसे फिर से पढ़ने की इच्छा भीतर जागती है...। कहानी खत्म होते ही... हाथ खाली दिखते है। क्या था यह??? लगता है कि मेरा ही जिया हुआ कुछ है... बहुत पास का रहस्य। जिसे मैंने अभी-अभी पढ़ा और जिसे किसी को भी बताना बेईमानी होगा।
निर्मल वर्मा जी का शब्दों का प्रयोग दिल को छूता है। एक कहानी कुछ दिनों पहले पढी थी शायद नाम डाक टिकटें। कैसे एक बच्चे का चित्रण किया था उस कहानी में। सच दिल खुश हो गया। आज पहली बार आपके ब्लोग पर निर्मल जी के कारण हुआ और आकर अच्छा भी लगा। खासकर किताबों की पंक्तियों को पढना।
ReplyDeleteनिर्मल वर्मा जी का शब्दों का प्रयोग दिल को छूता है। एक कहानी कुछ दिनों पहले पढी थी शायद नाम डाक टिकटें। कैसे एक बच्चे का चित्रण किया था उस कहानी में। सच दिल खुश हो गया। आज पहली बार आपके ब्लोग पर निर्मल जी के कारण हुआ और आकर अच्छा भी लगा। खासकर किताबों की पंक्तियों को पढना।
ReplyDeleteनिर्मल वर्मा की प्रसिद्ध रचनाओं में "वे दिन" और उनके अनुवादों में रोमियो जूलियट और अँधेरा बहुत प्रसिद्ध है...
ReplyDeleteचेक साहित्य को हिंदी में लाने का काम उन्ही का है, पता नहीं ऐसे लेखक के अनुवाद को क्यों नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है.
भारतीय होते हुए भी उनकी कई रचनाओं का परिप्रेक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय रहा है..
अगर संभव हो सके तो आप उनकी रचनाओं को वेब पर लायें, आभारी रहूँगा...
निर्मल वर्मा की रचनाओं को पढ़ते हुए कई बार लगता है कि जो मज़ा आ रहा है उसे 'प्रोलॉन्ग' करने के लिए बचा-बचा कर आहिस्ता आहिस्ता पढ़ा जाए ।
ReplyDeleteसर्दियों के गुनगुने दिनों में छत पर लेटकर निर्मल वर्मा को पढ़ने वाले छोटे शहर के वो दिन खूब खूब याद आए ।
nirmalji nirmal hain!
ReplyDeleteमानव आज बहुत अरसे के बाद यहां आना हो रहा है और आते ही निर्मल वर्मा जी से मुलाकात कर आनंद आ गया। निर्मल वर्मा का लिखा हुआ हमेशा ऐसा लगता है जैसे हमारा सोचा, जीया, भोगा जीवन शब्दों में उतर आया हो। मैं बहुत से लेखकों को बहुत पसंद करती हूं लेकिन निर्मल जी को पढ़ कर जो अनुभूति होती है वो सबसे अलग होती है बिल्कुल निजी।
ReplyDeleteYour blog has taken me into a all together new world!!
ReplyDeleteHOW to read story
ReplyDeleteबुखार कहानी खोजने से नही मिल रही है कृपया मदद करें
ReplyDeleteBukhar kahani nhi mil rahi plz help
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