Sunday, August 18, 2013

A very easy Death.....

A very easy Death…. Simone de Beauvoir …. “WHETHER YOU THINK OF IT AS HEAVENLY OR EARTHLY, IF YOU LOVE LIFE IMMORTALITY IS NO CONSOLATION FOR DEATH.” मृत्यु... कितना गहरा असर है इस किताब का...। बचपन की बहुत छोटी-छोटी चीज़ों का असर हम अपने पूरे जीवन देख सकते हैं...। माँ ऎसा शब्द है जो घर की तरह काम करता है....। दो बहने... Poupette और Simone …. और उनके उनकी माँ से संबंध... Complex, sometimes shocking …। हस्पताल में हर एक दिन का धीरे-धीरे गुज़रना...। माँ के चहरे के बदलते रंगों में, उनके सपनों में, उनके दिखने और नहीं दिखने में दिन का सरकना। मृत्यु को अपनी माँ के अगल बगल देखना और कुछ ना कर पाना... माँ की पीड़ा जिसमें उन्हें मृत्यु जल्दी आ जाए बिना तड़पे... यह प्रार्थना करना और फिर उस प्रार्थना की गलानी। एक बूढ़ी माँ का मरना बहुत स्वाभाविक है... पर सिमोन ने जिस तरह बहुत स्वाभाविक ढ़ंग से उनके अंतिम दिनों का ब्यौरा लिखा है... हम पर उनकी मृत्यु असर करने लगती है... और फिर वह बीच में उनकी बहन और उनके माँ से संबंध के बारे में लिखती है तो हमें पता चलता है कि वह माँ जो बिस्तर पर लेटी हुई है उनका कितना गहरा प्रभाव है दोनों बहनों पर.... कुछ ही देर में आप सिमोन की आँखों से सोमवार.. मंगलवार... का गुज़रना जीने लगते हैं। “When someone you love dies you pay for the sin of outliving her with a thousand piercing regrets.” आख़री पन्नों में…. जब मृत्यु के बाद माँ चीज़ों में बट जाती है...। सिमोन की बहन उनका रिबिन रखना चाहती थी... पर उससे क्या होगा? जब उन्हें शमशान ले जाया जा रहा था तो सिमोन की बहन ने कहा.... “THE ONLY COMFORT I HAVE IS THAT IT WILL HAPPEN TO ME TOO… OTHERWISE IT WOULD BE TOO UNFAIR.” हम किस तरह किसी के चले जाने की खाली जगह को भर सकते हैं? हमें हर बार लगता है कि वह गुण हमें आता है... पर हम हर बार हारे हुए उन ख़ाली जगहों में अपनी ही आवाज़ को गूंजता हुआ सुनते हैं। किसी अपने के चले जाने को पूरी ज़िदग़ी ढ़ोते रहते हैं.... फिर-फिर बार-बार वह अलग-अलग अर्थों में अलग-अलग कमरों में हमसे टकराता है पर हम उसे कभी देख नहीं पाते। जब मेरी नानी की मृत्यु हो रही थी तब मैं उनके बगल में बैठा था... ठंड थी... हम सब उनके शरीर से प्राण निकल जाने का इंतज़ार कर रहे थे... वह उल्टी सांसे लेने लगी थी। तब मैंने उनकी देह को बहुत करीब से देखा था... सूख़ी सी देह... मुझे बहुत आश्चर्य हुआ था कि इसी शरीर ने मेरी माँ को जन्म दिया है....। तभी मुझे उनकी तनी हुई नसें दिखी थी... पता नहीं कितने सालों का संघर्ष... उन नसों में सूखकर जम गया था। मैं आज तक उस रात को नहीं भूला हूँ...। जब सिमोन अपने माँ के खुले हुए मुँह की बात कर रही थीं तब मैं अपनी नानी के चहरे को देख सकता था साफ...। इस किताब ने भीतर पल रहे पता नहीं कितने छोटे-छोटे हिस्सों को ज़िदा कर दिया है। हम सबने अपने माँ बाप की मृत्यु की कल्पना की है... पर हम कभी भी उसके लिए खुद को तैयार नहीं कर सकते...। सिमोंन जितनी बार हस्पताल का कमरा नम्बर 114 लिखती हैं किताब में... मैं उस कमरे के बाहर उनका खड़ा रहना देख सकता हूँ... धीरे-धीरे उनका रेंगते हुए उस दरवाज़े का खोलना.. धीरे-धीरे मृत्यु के करीब आने को लिखना। मैं जब दुबे जी (पं. सत्यदेव दुबे) को देखने हस्पताल गया था... वह कोमा में थे... उनकी मृत्यु के कुछ दिन पहले की बात है.... मैंने उनके पास खड़े रहकर पता नहीं क्यों उनके माथे पर हाथ रख दिया था... (जब वह ज़िंदा थे मेरी कभी हिम्मत नहीं थी कि उनका माथ छू दूं...)। शायद मुझे लगा था कि वह कोमा में कुछ बुरा सपना देख रहे हैं... उनकी देह बार-बार कांप जाती थी। उनके माथे पर हाथ रखते ही पता नहीं क्या हुआ मैं ज़ार-ज़ार रोने लगा... मैं खुद को संभाल नहीं पाया.... पता नहीं... आज यह किताब पढ़ते वक़्त मुझे बार-बार मेरा दुबे जी का माथा छूना याद आ रहा था... पता नहीं...मैं अपने रोने को लेकर इतना झेंप क्यों रहा था...... “THERE IS NO SUCH THING AS A NATURAL DEATH: NOTHING THAT HAPPENS TO A MAN IS EVER NATURAL, SINCE HIS PRESENCE CALLS THE WORLD INTO QUESTION. ALL MEN MUST DIE: BUT FOR EVERY MAN HIS DEATH IS AN ACCIDENT AND, EVEN IF HE KNOWS IT AND CONSENTS TO IT, AN UNJUSTIFIABLE VIOLATION.”- Simone ….

6 comments:

Anonymous said...

sab kuch bohot alag hai usual issues se...gehre aur gehre utar jaane ka process ...atleast thts wht i feel

Anonymous said...

अन्दर तक उतरते शब्द जो अचानक ठंडी लहर में बदल गए

Anonymous said...

अन्दर तक उतरते शब्द जो अचानक ठंडी लहर में बदल गए

Shakti said...

I started reading this blog yesterday and just couldn't stop.
Itni saralata, itni sadagi. Had ek post jeevan se juda hua lagta hai. Manav Kaul sir, aap jeevan ko bahot kareeb se dekh paate hain.

--Your admirer.

Aparajita said...

अजीब सी टीस है जो व्याख्या के बाहर है पर महसूस के बेहद करीब। लिखते रहिए क्यों कि हम ऐसा महसूस कर भी लेते होंगे पर वर्णन नहीं कर पाते।

abrahamijames said...

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मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल