Wednesday, May 14, 2008

टूटा फूटा कुछ...


वो कौन सा ऎसा भीतर का एक जानवर होता है जिसकी वजह से एक इंसान दूसरे इंसान को मार देता है। मेरे लिए सारी वजह सोचने के बाद भी, सारी वजह कम पड़ जाती है। हमारा इस कदर हिसंक होना हमें क्या दिला देता है अंत में…

Nathuram godse…ने गांधी को मारने की वजह को justify करते हुए अपने अंतिम भाषण में कहा था- (‘his main provocation was the mahatma’s constant and consistent pandering to the muslims.’)- ‘culminating in his last pro-muslim fast which at last goaded me to the conclusion that the existence of Gandhi should be brought to an end immediately.’- guha’s ‘india after Gandhi’

इसके पहले भी गांधी पे एक पंजाबी refugee ‘मदन लाल’ ने bomb फैका था।

मैंने कभी एसी कोई धटना (एक आदमी के, आदमी को मारने वाली) अपनी आंखो से नहीं देखी हैं न ही मैं देखना चाहता हूँ, मैंने ये सब फिल्मों में देखा है-‘कि मैं तुझे जान से मार दूगाँ।‘ और बाद में सच में जान से मार दिया जाना।

इस दुनियाँ की सबसे बड़ी मूर्खता मुझे लगती है जब कोई धर्म के लिए लड़ता है, इतिहास लगभग सारे ऎसे उदाहरणों से भरा पड़ा है।मेरी एक बात समझ में नहीं आई मेरा धर्म हिन्दू हैं…और अगर मैं अपने धर्म का पालन करना चाहता हूँ तो मेरा धर्म मेरे लिए कभी मर ही नहीं सकता है,… किसी और के धर्म की वजह से मेरा धर्म खतरे में कैसे पड़ सकता है?
दूसरा धर्म की श्रेष्ठा का प्रश्न, ये वैसा ही है जैसा ये प्रश्न कि- ‘मेरी माँ तेरी माँ से कहीं ज़्यादा वात्सल्य से भरी है।‘
मैं जानता हूँ ये प्रश्न इतना सरल नहीं है, पर अगर हम बेसिक बातों पे आना चाहें, तो हमें सच में कुछ इसी तरह के तर्क सामने नज़र आते हैं।
ओशो अमेरिका जाता है वहाँ से उसे भगा दिया जाता है कि क्रिश्चेनिटी को खतरा है (और भी बहुत सारी जगह से), जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग की और बनाया कि हिन्दुस्तान एक हिन्दु द्वारा चलाया जा रहा, हिन्दुओं के लिए राष्ट्र है.... यहां इस्लाम को खतरा है। हिन्दु डरे रहते हैं कि मुस्लमानों की आबादी बढ़ती जा रही है, वो बांग्लादेश से भी बड़ी तादाद में आ रहे हैं.. हिन्दु धर्म को खतरा है।अरे भाई आप सबके बचाने के चक्कर में सारे धर्म की खूबसूरती ही खत्म हो गई, अब सभी एक कुरुप धर्म को अपने कंधे पर उठाए भागे जा रहे हैं।
मैं खुद एक धार्मिक शहर से आया हूँ, भजन सुनते हुए रोज़ मेरी आँखे खुलती थी, खासकर हरिओम शरण के भजन।सारा संगीत किसी न किसी धर्म से ही उपजा है। नुसरत साहब जब गाते थे तो लगता था कि सीधे अल्लाह से बातें कर रहे हैं। बिस्मिल्लाह खाँ साहब शहनाई सुनते हैं तो हम किसी दूसरी दुनियाँ में पहुच जाते हैं।ये धर्म की शक्ति है,चीखना चिल्लाना नहीं।

–‘लोगों का उनके मरने के बाद भी ज़िन्दा रहने की इच्छा रखना।‘ ये भी बहुत सी समस्याओं का एक मूलभूत कारण है, शायद इसी भावना का एक छोटा सा उद्दाहरण हमें मंदिरो में देखने को मिलता है जब लोग मंदिरो की सीड़ियों पे अपना नाम खुदवा लेते हैं।


मैं मेक्लाड़्गंज में एक लामा से बात कर रहा था, उसने बताया कि दलाई लामा कभी भी अपना खुद का धर्म छोड़ने की सलाह नहीं देते वो कहते है कि बुद्धिज़म (तिब्बत का) को समझो पर अपना मदर रिलिज़न मत छोड़ो।
धर्म इंसान देखे... और इंसान सारे धर्म समझे।
हम एक बात कभी मानने को तैयार नहीं है कि ये सारे धर्म ग्रंथ किसी एक इन्सान ने बैठके लिखे थे।इससे काफ़ी चीज़े दिमाग़ से झड़ जाएगी जो बैकार में अभी लोगो के दिमाग़ में आतंक मचाए पड़ी हैं।

ये शायद मैं पहले भी कर चुका हूँ, गुजरात के दंगो के बाद मैं काफ़ी परेशान था तब मैंने एक कविता लिखी थी('दंगों के हम...' के नाम से जिसे आप मेरे कविताओं के ब्लाग में पढ़ सकते हैं, उसका लिंक दिया हुआ है।), अभी जयपुर धमाको के बाद, मेरे दिमाग में जो भी कुछ टूटा फूटा चल रहा था मैंने लिख दिया। मैं बस इतना ही कर सकता हूँ, लिख सकता हूँ और कुछ नहीं।

3 comments:

VIMAL VERMA said...

मानव,आपने बड़ी ईमानदारी से अपनी बात कही है,अच्छा लगा ..आपका जवाब लिखने बैठ जाउँ तो जवाब लम्बा हो जाएगा..ठीक आपकी तरह ही मैं भी सोचता हूँ.इस धर्म के पचड़े ने सामाजिक विकास को अवरूद्ध किया है.....और ये धर्म जब तक अस्तित्व में रहेंगे तब तक जो चेहरा हम धर्म का देख रहे है वो पर्दे के पीछे उतना ही कुरूप बना रहेगा.....आपकी चिन्ता जायज़ है...

mamta said...

ऐसे हादसों को अंजाम देने वाले बिल्कुल भी नही सोचते है।
आजकल इंसानी जिंदगी की कीमत ही क्या है।

Udan Tashtari said...

सार्थक एवं इमानदार चिन्तन को बखूबी और प्रभावकारी तरीके से प्रस्तुत किया है.

सभी दुखी हैं जयपुर की इस घटना से.

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails

मानव

मानव

परिचय

My photo
मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल