Friday, February 20, 2009

सूअर...



एक सूअर लटकटा-मटकता अपना पेट भरने के बाद एक गाँव की एक गली से गुज़र रहा था। गली के दूसरे छोर पर कांग्रेस का एक बहुबली युवा कार्यकर्ता एक बड़ा सा पत्थर लेकर उस सूअर का इंतज़ार कर रहा था। सूअर, नज़दीक पहुचने ही वाला था कि एक बीजेपी का कार्यकर्ता, ठीक उसी वक़्त, शेव करने के बाद बाक़ी बचे पानी को तुलसी में उड़ेलने, अपनी बॉलकनी पर पहुँचा। बहुबली कार्यकर्ता ने पूरे जोश के साथ वह पत्थर सूअर पर दे मारा... सूअर लड़खड़ाया... फिसला... काग्रेस के बाक़ी कार्यकर्ता उछल पड़े... कूदने लगे...। तभी सूअर कुछ संभला, उसने ऊपर आसमान की और देखना चाहा.. पर वहा उसे बीजेपी का अधीर कार्यकर्ता अपनी बॉलकनी पर खड़ा दिखा, उसने अपनी पीठ और सिर को झटका और सरपट दौड़ लगा दी। ठीक उसी वक़्त बीजेपी के कार्यकर्ता ने एक भगवा गमछा अपने सिर पर लपेट कर अपने कार्यालय की और भागा। रिपोर्ट लिखाई गई... बात बढ़ते बढ़ते.... देश में फैल गई। उस सूअर को ढूढ़ने का काम जनता पर छोड़ा गया। जनता हकाबका होकर अपने बीच एक सूअर तलाशने लगी... ठीक उसी वक़्त, सूअर जैसे एक सूअर ने मायावति के बंग्ले के बाहर विचरण करने की गलती कर ली। एक छोटे स्तर की बड़ी मीटिंग मायावति ने बुलवा ली, यूवा कांग्रेस और यूवा बीजेपी... मायावति के दरबार में एकत्रित हुए...। मायावति ने सूअर के बाल नुचवा लिए थे... उसे presentable बनाने के लिए...। सभी अवॉक से सूअर को देखते रहे... जब वह सबके बीच आ रहा था तो उसकी चाल का लटका-झटका सब गायब था...। उससे पूछा गया... क्या यही थे वह लोग?... कौन-कौन थे? और अब तुम्हें इसके बदले में क्या चाहिए?...सूअर काफी समय तक शांत रहा... फिर कुछ ही देर में उसने ऊपर आसमान की तरफ देखा.... वापिस सब लोगों को देखा... और एक शब्द कहा ’गू..’।

4 comments:

Anonymous said...

बेहतर सूअरनामा है यह।

Vikash said...

:)

Unknown said...

Brilliant!! bada hi karaara tamaachaa jad diya aapne!! Wondering whom to pity.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

:)

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मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल