Sunday, May 24, 2009

देर रात तक जगता हूँ, सुबह जल्दी उठूगाँ की कसम खाकर सोने की कोशिश करता हूँ। सुबह आँखें खुलती है तो गई रात की बातों के बारे में सोचता रहता हूँ.. एक चक्र पर गोल-गोल घूमते हुए... जब भी छिटककर कहीं दूर गिरता हूँ तो रेंगने लगता हूँ। आत्मविश्वास को अपने काम में ढ़ढ़ने की कोशिश करता हूँ। कसमों का हिसाब कभी भी नहीं रख पाता हूँ... सो जो सबसे पुरानी कसम थी उसे याद करने की कोशिश करता हूँ। बहुत पुरानी चीज़ो को सोचना भी अजीब सुख देता है.... जैसे अभी-अभी घटे ग़म को मैं उतना महत्व नहीं देता हूँ... क्योंकि इसके बारे में मैं कई सालों बाद सोचूगाँ और पीड़ा महसूस करुगाँ। अभी-अभी लिखी हुई कविता भी मुझे ज़्यादा सुख नहीं देती... उस सुख के लिए मुझे बहुत पुरानी लिखी किसी कविता का सहारा लेना पड़ता है। तृप्ती की नींद का सहारा अभी तक पास में है... गहरे अधेरें में सोने की आदत पिछले कुछ समय से डाल ली है... बीच में कभी आँखें खुलती है तो सब तरफ गहरा अंधकार दिखता है तो नींद का खुलना भी सपना ही लगता है और मैं सोया रहता हूँ। कुछ दुख जो मैं बीते दिनों में जिए है उन्हें सोचकर भी डर लगता है... कई सालों बाद जब इन्हें जीने का समय आएगा तो कैसे जी पाऊगाँ इस पीड़ा को...????

      आज बहुत आंधी तूफान और बारिश बनी रही शाम के वक़्त... अच्छा है बहुत ठंड़क आ गई है। इस तूफान में सहसा: उन चिड़ियों का ख्याल हो आया जिन्हें देखते हुए मैं अभी तक आहे भर रहा था। हवा बहुत तेज़ चल रही थी.... कहाँ छिपी होगीं यह चिड़ियाएँ??? पिछले दो दिनों से काफी गर्मी थी... काफी मतलब पहाड़ के हिसाब से गर्मी... बारिश आते ही ठंड़क आ गई है। बहुत सुंदर रात है। इच्छा है कि बस बाहर ही घूमते रहो। वापिस जाने के दिन पास आ रहे हैं.. अकेलेपन की कमी महसूस कर रहा हूँ.. सच में मैं एक चुप और शांत जगह पर खो जाना चाहता हूँ.. बिना किसी काम या कुछ करने की इच्छा का खोना। अपने लिखे के जितने भी चहरे हैं वह बोर करने लगे हैं। नए चहरों की तलाश जीवन में उथल-पुथल लाएगीं... फिर जब पुराने चहरों की तरफ लौटने की इच्छा जागेगी तो वह वहाँ नहीं होगें। गुणा भाग है..... you lose some, you win some... 

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मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल