Saturday, June 9, 2012

बोर्ड के इस तरफ....

अज्ञये ने कहीं लिखा है कि ’कितना अच्छा हुआ कि हमने चौराहे पार कर लिये... अब चुनने के लिए हमारे पास कोई रास्ता नहीं है (ऎसा ही कुछ)’ मैं उस रास्ता चुन लेने के बाद की जद्दोजहद को लेकर कुछ दिनों से विचार-शून्य हूँ। विचार-शून्य इसलिए कि रास्ता चुन लेने के बाद मैं पिछले कुछ दिनों से कुछ अलग रास्तों की तरफ मुड़ लिया हूँ...। अब अपने रास्ते (लेखन) से प्रेम इतना प्रगाढ़ है कि जब भी दूसरे रास्तों पर होता हूँ, मेरे दिमाग़ में लगातार उसी रास्ते के ख़्वाब भरे रहते हैं … सिर्फ ख़्वाब, कोई विचार नहीं। बीच में कुछ समय निकालकर जब भी मैं वापिस उस रास्ते पर चलने की कोशिश करता हूँ तो एक साईन बोर्ड लगा दिखता है कि ’यह रास्ता आपके लिए बंद हैं’... मैं जानता हूँ कि यह रास्ता नाराज़ है मुझसे... गुस्साया हुआ है... मैं इसी का हूँ.. इसी के लिए बना हूँ...। खुद के चुने हुए रास्ते का यह ही संकट है कि जब हम खुद से ही बेईमानी कर रहे होते हैं तो संवाद-शून्य होते हैं...। मेरे पास अभी कोई भी ऎसे संवाद नहीं है कि मैं उस रास्ते को मना सकूं... मैं बस इंतज़ार ही कर सकता हूँ। मैं अभी इंतज़ार ही कर रहा हूँ... लगा था कुछ दिन लगेंगे... फिर दिन हफ़्तों महीनों में बदल गए… अब झूठ क्या कहूं इस बीच मैं दूसरे रास्तों पर भटक-भटक कर वापिस आता रहा हूँ। ’यह रास्ता आपके लिए बंद है’ का बोर्ड हटता ही नहीं है…। मैं ज़बर्दस्ति नहीं कर सकता… मैं बस सिर झुकाय उस बोर्ड के दूसरी तरफ के अधूरेपन को देख सकता हूँ…. वहां.. मेरी कहानीयां अधूरे बिंदुओं मोडों पर बिखरी पड़ी हैं.. नाटक अपनी नाटकीयता के साथ आधे-अधूरे से पेड़ों से लटके पड़े हैं। बस यह रास्ते के उस तरफ का अधूरापन ही उस रास्ते का मुझसे सवाल है जिसके जवाब मेरे पास नहीं है… मैं दे भी नहीं सकता। मेरा सिर झुकाना किसी ग्लानी के कारण नहीं है…. मेरा सिर उस पवित्रता के सामने झुक जाता है जो बोर्ड के दूसरी तरफ है… मैं अपवित्र हूँ.. मैं रोगी हूँ..। संवाद अगर मैं कर सकूं तो यह ही करुंगा कि आर्थिक दबाव था… क्या करुं.. दूसरे रास्तों पर भटकना पड़ा…। पर अर्थ की बात ही उस पवित्रता के सामने छिछली लगती है। मैं बस उससे इतना ही कह सकता हूँ कि मैं कमज़ोर था..। वह रास्ता एक तरीके का जीवन मांगता है... उस रास्ते पर गहरे जाने की लिए अपने जीवन को बहुत समेटना पड़ेगा... ख़ाली जगह के विस्तार को फिर से ख़ीचकर बढ़ाना पड़ेगा... और पता नहीं क्या क्या... पर चौराहो को पार कर लेने पर ही बात ख़त्म नहीं होती... बात चौराहों को पार करने के बाद शुरु होती है... ऎसी बातें जहां से भटक जाने पर संवाद असंभव है..। अब ’यह रास्ता अपके लिए बंद है’ के इस तरफ खड़े रहकर मैं बस इतना ही कुछ कह सकता हूँ.... इसके बाद शब्द फिर भारी होने लगे हैं... तारतम्य फिर टूट रहा है... मैं फिर भटकने लगा हूँ...।

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

चौराहों पर न रुके का नियम बना रखा है, न मतिभ्रम, न टक्कर..

Pratibha Katiyar said...

वो रास्ता भी आपसे प्यार करता है इसीलिए नाराज है...नाराजगी पिघलने का इंतजार तो करना ही होगा.

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails

मानव

मानव

परिचय

My photo
मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल