Tuesday, January 22, 2008


क्या हमारा जीना,लगातार चमत्कारों का सामान्य होता जाना नही है.

2 comments:

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

या खुद मे एक चमत्कार!!

PD said...

डर है कि चमत्कार कि उम्मीद में पूरी उम्र ही ना गुजर जाए..

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मानव

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परिचय

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मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल