Thursday, February 21, 2008
अन्तिमा
बहुत समय हो गया उपन्यास वहीं पे है... रुका हुआ। 'उपन्यास की अपनी नि्यति है...'- ऎसा कुछ सोच लेता हूँ, 'जब नहीं लिख रहा हूँ'.. का गिल्ट होता है...।वो कोई और है, जो उपन्यास लिखता है...कोई और है, जो नाटक, कविताएँ या कहानी लिख रहा होता है....। जो अभी तक उपन्यास लिख रहा था, वो लिखने के पहाड की चोटी पर नहीं है, इस चोटी पे इस वक्त कहानी लिखने वाला बैठा है.....उपन्यास लिखने वाला नीचे,..पहाड के गहरे अंधेरे में..... अंधेरे की बहती नदी में, अपना चहरा धोने गया है...:-)..
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मानव
परिचय
- मानव
- मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल
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