Friday, August 28, 2009

अलस्य सुबह... (डायरी..)

9th August.09,

अलस्य सुबह एक बात मेरे साथ उठी, चरर-मरर करती हुई, ग़ालिब के जूतों की तरह साथ चली, बाथरुम में, बाहर टहलते हुए, किचिन में सामने लगे लाल फूलों के चार गुच्छे रोज़ अपनी गति में उगते रहे। सुबह उन्हेंसुप्रभातकहने का एक संस्कार बन गया है।चुप्पी….’ नाम के नाटक को बहुत देर तक ताक़ता रहा। चार शब्द और लिखने की इच्छा से मेरी उंग्लियाँ भीगी दिखी। गीले हाथ को लिए मैं तौलिया के पास गया। सफेद तौलिये से हाथ पौछते ही वह लाल रंग से मेला हुआ।

10th August.09,

अलस्य सुबह, लिख सकने की परिधी पर मेराथन करता हुआ मैं, किसी से भी जीत नहीं रहा हूँ। एक हफ्ता और है, कहाँ तक वह लिख सकूं कि सो सकूं। सुबह टहते हुए खरगोश दिखाअपनी कविता याद गई, कभी ऎसा भी हो कि अपनी कविता के बारे में सोचूं और खरगोश दिखे।

13th August.09,

अलस्य सुबह, चाय बिस्तर पर मिलीकिसी के लिए कुछ समय दिया। ग़मग़ीन मौसम में पत्ते सात्वना से हिलते रहे। छल भी सामने है माया भी वही है। सामने के चीड़ के पेड़ों की कतार के बाद कुछ भी नहीं है।चुप्पी…’ में अब इच्छा है कि पहला दृश्य Bukowaski और निर्मल वर्मा chess खेल रहे हैं। संवाद लेखन पर हैंकुछ बहस सी छिड़ जाती है जिसमें अंत में निर्मल वर्मा आलमा को कोट करते हैं… bukowaski चुप हो जाता हैनिर्मल वर्मा खुद अपनी बात से इत्तेफाक नहीं रखतेदोनों इस नतीजे पर पहुचते है कि आलम्मा से मिलना बहुत ज़रुरी हैआलम्मा के बिना इस बहस का कोई भी मतलब नहीं है। दोनों आलम्मा को खोजने निकल पड़ते हैं।…Oh God! What’ll happen to this play????  Basic idea is that… the creator and the creation merge in the process.

14th August.09,

अलस्य सुबह, बारिश है, सामने गरम चाय है। कल रात देखी फिल्म… revolutionary road… का स्वाद है। कल बोराट भी देखी जो ठीक ही थी, the bucket list देखी जो okay film थी, और Pi देखी… जो काफी dark film थी और मैं थक गया हूँ Pi जैसी फिल्मों से…।

Revolutionary road बहुत कुछ आधे-अधुरे की याद दिलाती है।… मिड़िल क्लास का TRAP. Paris में नया जीवन शुरु करना एक सपना है और वह सपना ही रह जाता है।NICE FILM… 

1 comment:

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

"सुबह टहते हुए खरगोश दिखा… अपनी कविता याद आ गई, कभी ऎसा भी हो कि अपनी कविता के बारे में सोचूं और खरगोश दिखे।"

ये पन्क्ति पढी तो अचानक एक मुस्कराहट सी आ गयी फ़िर वो हसी मे बदल गयी... इस अकेले सुनसान कमरे मे बडी देर हसा मै... ब्यूटीफ़ुल लाईन्स..

आपकी डायरी पर ज्यादा नही लिखूगा वरना सोचेगे कि आपकी पर्सनल डायरी पढ रहा हू..

’रिवोलूशनरी रोड’ एक सच्ची कहानी है.. उन त्यागो की जो दोनो ही एक ’परिवार’ बनाने मे खर्चते है और फ़िर उन स्वार्थो की भी जो दोनो ही उस परिवार से लेने की कोशिश करते है.. कहते है कि ’बोरात’ फ़िल्म के दौरान ही इसकी क्रू पर न जाने कितने केस लगाये गये थे क्यूकि इन लोगो ने छापामार कैमरा का यूज किया था.. रीयल लोकेशन्स पर जाकर शूट किया था..

कई दिनो से मै भी ’द सेन्ट ओफ़ अ वूमेन’ लेकर बैठा हू... आगे ही नही बढ पाता.. :(

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मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल