Monday, August 16, 2010
मेरे प्रिय दोस्त...
प्रिय दोस्त,
आज सुबह एक अजीब बोझ लिए उठा...। उठते ही कुछ हल्का होने के लिए मैं Ruskin Bond पढ़ने लगा। अजीब था कि Ruskin bond के बगल में van gogh की किताब रखी हुई थी। कुछ कहानियाँ खत्म करने के बाद मैंने सीधा van gogh उठा लिया।
कल मैंने Gandhi और godfather एक साथ देखी थी।
कल ही एक दोस्त ने मुझसे पूछा था कि ’अमर होने का क्या मतलब है?’
मेरे प्रिय दोस्त जब मैं उसे इस बात का जवाब सा दे रहा था तो खुद भीतर अजीब सी उलझन महसूस कर रहा था। मुझे कुछ बहुत से चित्र याद आए.... जैसे एक बच्चा पेड़ पर अपना नाम गोद रहा है। किसी मंदिर में एक सेठ का शिलालेख लगा हुआ है। फिर कुछ वह लोग याद आए जो ऎसे जीते है मानो इन्वेस्ट कर रहे हो। उन लोगों के बीच बैठे हुए किसी ने मरने की बात छेड़ दी तो लगभग सब लोगों का जवाब था कि ’अरे ऎसे कैसे मर सकते हैं... भाई इतना किया है... अभी इसे भोगना तो बचा ही है। बिना भोगे थोड़ी मरेगें।’
फिर कुछ और लोग याद आए जो किसी मकसद से जीते है... जो ओर भी असहनीय है। यह....हम यूं ही पैदा नहीं हुए हैं से लेकर हम यूं ही नहीं जी रहे है... इस की लड़ाई है। बचपन की इच्छा कि मैं अब बच्चा नहीं हूँ... लोग मुझे गंभीता से ले... के बड़े रुप हम सब देखते रहते हैं।
अब इसमें अमर होने की इच्छा मुझे बहुत ही सहज बहती हुई दिखती है।
मेरे प्रीय दोस्त मेरी उलझन वहाँ शुरु हुई जब इन सारी बातों के बीच मैं खुद अपना उद्धाहरण पेश करने लगा। जिसका मुख्य बिंदु ’निरंतरता’ था।
मैंने शुरु किया था कि जब मैंने अपना पहला नाटक प्रस्तुत किया था... उसकी मुझे जो याद है वह है नाटक के बाद मिली वाह वाही... मुझे तो कुछ संवाद अभी भी याद है जो लोगों ने नाटक देखने के बाद मुझसे कहे थे।
मेरे प्रिय दोस्त तभी मैंने अपने दोस्त से पूछा कि फिर उसके बाद मैंने इतने और नाटक क्यों लिखे? क्यों किये?... जवाब बहुत से थे पर उस वक्त जो जवाब मैंने कहा था वह था... शायद यह उस वाह वाही की याद थी जो मैं फिर से बार-बार जीना चाहता था। उस एक बात की निरंतरता मैं बनाए रखना चाहता था... ।
विचार एक अजीब सी निरंतरता की प्रक्रिया है। बिना विचार का कोई क्षण नहीं होता है। silent mind जैसी कोई चीज़ नहीं होती है। यह विचार अपने आश्चर्यों की निरंतरता बनाए रखना चाहते हैं। हमें हर आश्चर्य जीते ही सामान्य लगने लगते हैं... हम उन आश्चर्यों को तुरंत अपने जीने का हिस्सा बना लेते हैं..। पर उस आश्चर्य को जीते हुए जो अनुभव हुए थे उसकी निरंतरता की भूख कभी खत्म नहीं होती। जिसकी वजह से हम ईंट पर ईंट रखते जाते हैं... इसका कोई अंत नहीं है।
इन सब बातों के बीच में ही कहीं मैं चुप हो गया था। फिर बहुत लंबी ख़ामोशी के बाद हमने बातें बदलने की बहुत कोशिश की पर हम असफल रहे।
बहुत समय से मेरी इच्छा बढ़ती चली जा रही है कि मैं किसी पाहड़ पर एक गांव में चला जाऊं... जहाँ कुछ चार-पाँच अभिनेताओ की एक रेपेट्री खोल दूं। वहीं एक छोटा सा थियेटर बनाऊं.. और वहीं रहकर नए किस्म के प्रयोग करुं...। यह इच्छा दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही है। मुझे हमेशा से लगता रहा है कि नए प्रयोग... या नाटक की नई भाषा की शुरुआत कुछ इसी तरह की जा सकती है।
अभी तो नए नाटक के गुणा-भाग में लगा हूँ... “हाथ का आया?...शून्य” यह नाटक का नाम है।
प्रिय दोस्त इस नए नाटक को लेकर मैं काफी उत्साहित हूँ... आशा करता हूँ जो सोच रहा हूँ उसके अगल-बगल कहीं पहुंच जाऊंगा।
आशा है तुम अच्छे होगे...
बाक़ी नए विचार पर....
तुम्हारा
मानव
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मानव
परिचय
- मानव
- मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल
7 comments:
मनाव वाकई आप दिल से लिखते हैं..और दिल से कही बात हमारे दिल में गहरे पैठती है...आपकी खासियत है कि जटिल से जटिल स्थितियों को बड़े ही आसान लहज़े में कह जाते है...और यही लगता है कि मानव लिखता अपने बारे में है पर लगता है "अरे ये बात तो मुझ पर भी लागू होती है" अच्छा लगे आपके उद्गार। शुक्रिया
काफ़ी अच्छा विचार है.. मेरी भी ऎसी न जाने कितनी इच्छायें हैं जो आपस में लडती रहती हैं..
साईलेंट माईन्ड वाली स्टेट सोने के बाद भी नहीं आती... कभी कभी रेस्टलेस हो जाता हूँ तो कोई आवाज थाम लेती है लेकिन उस आवाज के जाने के बाद फिर से वही ढाक के तीन पात..
बहुत खूबसूरती से दिल की बातें लिखी हैं आपने ..बहुत बढ़िया .
बहुत खूबसूरती से दिल की बातें लिखी हैं आपने ..बहुत बढ़िया .
हम दुआ करते हैं कि आप सफल हों !!
शुभकामनायें ...!
यदि आप के पास ये चार पुस्तकें एक साथ हैं तो निश्चय ही आपके स्वाध्याय के आयाम वृहद हैं।
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