मैं काफ़ी समय से ये सोच रहा था, कि हम- अपने शरीर की- खुद को ज़िदा रखने या बनाए रखने की कला का, कितना अधिक फलसफ़ा बघारते है...।जबकि वो शरीर महज़ अपने आपको बचा रहा होता है। शरीर अपने आपमें सबसे अधिक शांति प्रिय प्रणाली है... जब हम खुद, बाहर शांति खोज रहे होते है, तो असल में ये हमारी अपने शरीर के प्रति हिंसा है..उसकी प्रणाली के प्रति एक तरह का विश्वासघात... जिसे शरीर अपने ढ़ंग से विद्रोंह करता है... उसके विद्रोह से उपजतें है नए तरह के अनुभव, एहसास... जिसको असल में शारीर बाहर फैंक रहा होता है। पर हम उन सारे शरीर के विद्रोहो को आध्यात्मिक एहसास या अनुभवों के रुप में शरीर में ढूसं देते हैं।
जैसा कि मैं बात कर रहा था, शरीर की सरवाइव करने की क्षमता... । हम कहते है कि- 'हमें सीखना कभी बंद नहीं करना चाहिए'। मैं कहता हू बंद कर दो.. अभी.. इसी वक्त... मैं खुद देखना चाहता हूँ कि क्या होगा। क्या हम सीखना बंद कर देंगे...।
हम मन.. आस्था.. विश्वास.. भगवान... की बात कुछ इस तरह कर रहे होते है कि.. अभी हम इन सबसे बाहर बाज़ार में मिलकर आए हैं। हर शब्द एक इंन्सान है... जो असल में है नहीं.. चूंकि है नहीं सो इन्सानी दिमाग़.... हर उस चीज़ को, जो है नहीं, को लगातार बड़ा बना रहा होता है।
दिमाग़, एक बार जिए गए हमारे किसी भी अच्छे अनुभव को (जो असल में मृत है) बार बार वापिस जीवित करना चाहता है। वो फिर से वैसा का वैसा अनुभव वापिस चाहता है... इसी कारण हम अपने ही जिए हुए को वापिस जीने की कोशिश में लगे रहते है। कोशिश कभी कामयाब नहीं होती... क्योंकि हम अभी भी जीवित है हम अभी मरे नहीं हैं... हम लाख़ कोशिश क्यों न कर लें हम वैसा का वैसा कभी कुछ नहीं जी सकते हैं।
जैसा कि मैं बात कर रहा था, शरीर की सरवाइव करने की क्षमता... । हम कहते है कि- 'हमें सीखना कभी बंद नहीं करना चाहिए'। मैं कहता हू बंद कर दो.. अभी.. इसी वक्त... मैं खुद देखना चाहता हूँ कि क्या होगा। क्या हम सीखना बंद कर देंगे...।
हम मन.. आस्था.. विश्वास.. भगवान... की बात कुछ इस तरह कर रहे होते है कि.. अभी हम इन सबसे बाहर बाज़ार में मिलकर आए हैं। हर शब्द एक इंन्सान है... जो असल में है नहीं.. चूंकि है नहीं सो इन्सानी दिमाग़.... हर उस चीज़ को, जो है नहीं, को लगातार बड़ा बना रहा होता है।
दिमाग़, एक बार जिए गए हमारे किसी भी अच्छे अनुभव को (जो असल में मृत है) बार बार वापिस जीवित करना चाहता है। वो फिर से वैसा का वैसा अनुभव वापिस चाहता है... इसी कारण हम अपने ही जिए हुए को वापिस जीने की कोशिश में लगे रहते है। कोशिश कभी कामयाब नहीं होती... क्योंकि हम अभी भी जीवित है हम अभी मरे नहीं हैं... हम लाख़ कोशिश क्यों न कर लें हम वैसा का वैसा कभी कुछ नहीं जी सकते हैं।
2 comments:
ह्म्म!! रोचक!!
हम तो अब तक अपने शरीर से हिंसा ही किये जा रहे थे..
बढिया विचार प्रेषित किए है।
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