Thursday, June 11, 2009

भय...


       धीरे-धीरे सरकते हुए हम यहाँ पहुँच गए है। कई किस्म के Permutation combinations के बाद हम कुछ इस तरीके के बन गए हैं। आपस में एक किस्म की सतर्कता है, फिर सतर्कता का अपना एक भय है.... भय के आते ही उसके बहुत से नियम आ जाते हैं। उन नियमों को टटोलते-टटोलते... हमसे आकर कुछ नियम चिपक जाते हैं... बाद में हम इन्हें, हमारे जीने के नियम कहना शुरु कर देते हैं। हम हमारे भय को पता करने के पहले ही, कहीं और से उपजे भय के नियमों में से अपने नियम बटोर लेते है। त्रासदी वहाँ से शुरु होती है जब हम उन नियमों के लिए लड़ना शुरु कर देते हैं। लड़ने का कोई संस्कार नहीं होता है।

       कुछ समय बाद, किसी एक एकांत में, हम बैठे-बैठे सोचते हैं कि इस धीरे-धीरे सरक कर यहाँ तक पहुँचने में हमने कितना कुछ खो दिया है? तभी नींद आँखों में तैरने लगती है और हम उस आदमी को शत्‍ शत्‍ धन्यवाद देना चाहते हैं जिसने नींद का आविष्कार किया था। इस नींद से निकलने वाले सपनों की कतारों के बारे में सोचते-सोचते हम कल्पना जैसे दुनियाँ... को खोज लेते है, जो कि हमारे ठीक अगल बगल बहने लगती है... हम जब चाहते है उसका हिस्सा हो लेते हैं... भीड़ में, बात करते हुए.. चलते-चलते.. हँसते-खेलते...। यह imagine करने की क्षमता ही शायद हमारा जीते रहना संभव बनाती हैं। 

2 comments:

श्यामल सुमन said...

भय के आते ही उसके बहुत से नियम आ जाते हैं। उन नियमों को टटोलते-टटोलते... हमसे आकर कुछ नियम चिपक जाते हैं... बाद में हम इन्हें, हमारे जीने के नियम कहना शुरु कर देते हैं। हम हमारे भय को पता करने के पहले ही, कहीं और से उपजे भय के नियमों में से अपने नियम बटोर लेते है। त्रासदी वहाँ से शुरु होती है जब हम उन नियमों के लिए लड़ना शुरु कर देते हैं। लड़ने का कोई संस्कार नहीं होता है।

उक्त पंक्तियों ने प्रभावित किया। वाह। लेकिन निम्न को समझ न पाया-

तभी नींद आँखों में तैरने लगती है और हम उस आदमी को शत्‍ शत्‍ धन्यवाद देना चाहते हैं जिसने नींद का आविष्कार किया था।

मेरे हिसाब से तो नींद अनिवार्य जरूरत है मानव जीवन के लिए, फिर आबिष्कार? खैर--

अच्छा पोस्ट।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

मुनीश ( munish ) said...

Dear Manav,
In ur old posts i just saw ur Satohal diary. It will be very kind of u if u can tell me about the exact location of this village in Distt. Mandi. I couldn't locate it in map and it qualifies this destination for a trip.
Munish
munishontop@gmail.com

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मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल