Friday, September 9, 2011

secret island....



कल कुछ कोरियन आर्टिस्ट के साथ बैठा था। मेरा एक सवाल जिसपर कुछ बातचीत शुरु हुई थी वह था ’why we create? Or why we write?’ मेरे ज़हन में यह सवाल बहुत समय से चल रहा है कि मैं लिखता क्यों हूँ। मेरे पास इसके बहुत ही छिछले और रटेरटाए जवाब थे....। कुछ देर खामोशी छाई रही.... हम कुछ चार लोग बैठे थे.. janghae (composer), sook (painter), soo-hyeon (children novelist- red pencil)| खमोशी दो कारणों से थी पहला तो सवाल थोड़ा सीधा था.. और दूसरा उनका अंग्रेज़ी में हाथ तंग होना..। soo-hyeon ने पहले जवाब दिया कि ’उसे लगता है कि हम सबके भीतर एक टापू है... secrete island. उसकी अपनी सुंदर दुनिया है... हम जब भी उस टापू के बारे में बात करने लगते हैं तो कहानिया निकलती है.. उस कहानी को मैं लिखना पसंद करती हूँ... बनिसपत किसी से कहना।’ फिर अचानक बात उस खाली जगह के बारे में होने लगी जिसमें हम जब भी कुछ रखते हैं वह multiply होने लगता है... जैसे एक घांस का टुकड़ा अगर वहाँ छोड़ दिया जाए तो वह कुछ देर में जंगल का रुप ले लेता है.. और हम जंगल की एक कहानी लिख देते है... उसमें संगीत ढ़ूढ़ लेते हैं.. नहीं तो उसे paint कर लेते हैं।
मैंने sook की पेंटिग्स देखीं थीं। वह हर emotions के particles पेंट करती है... मतलब उन्होंने जो अपनी टूटी फूटी अंग्रेज़ी में जो बताया और जितना मैं समझ पाया। इस सारी बातचीत में janghae बहुत गंभीर बनी रही। जबकि वह एक बहुत उर्जा वाली महिला हैं। कुछ देर में वह कोरियन में बातचीत करने लगे और मुझे समय-समय पर sorry बोलते रहे... मैं janghae के बारे में सोचने लगा।
Janghae 48 साल की थीं पर उतनी उम्र की लगती नहीं थी... वह Switzerland में रहती हैं पिछले बीस सालों से... अकेले। मेरी उनसे दोस्ती बहुत जल्द हो गई थी..। क्योंकि वह ही थीं जो सबसे सही अंग्रेज़ी बोल लेती थी... और बहुत ही उत्साही थीं.... हम दोनों बहुत से पहाड़-जंगल साथ भटके थे। इस बीच मुझसे एक ग़लती हो गई... एक दिन जब हम घूमने गए थे.. मैंने मस्ती में उनसे कह दिया कि मैं हाथ पढ़ सकता हूँ...मुझे नहीं पता था कि यहाँ fortune telling एक बिज़नस है... लोगों का गहरा विश्वास है उसपर...। मेरा मज़ाक मुझपर ही भारी पड़ गया... janghae ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बहुत संजीदगी से मुझे देखने लगी। मुझे कुछ भी नहीं आता था.. पर मैंने अपने दोस्तो को बहुत ही संजीदगी से यह सब करते हुए देखा था सो मैं उन्हें कुछ सतही चीज़े बताने लगा... पर मेरी हर बात को वह कुछ इस तरह भीतर जज़्ब कर रहीं थी मानों वह पूर्ण सत्य हो...। सो मुझे लगा कि कुछ अच्छी बात कर लेनी चाहिए... मैंने उन्हें बताया कि आपकी luck line बहुत बढ़िया है.... आप बहुत lucky हैं.. वह चुप रहीं... मैंने कहा कि आपका जल्दी विश्वास नहीं करती लोगों पर... ऎसा उनसे बात करते हुए मुझे पता चला था। मैंने कहा आपके पास जल्दी ही बहुत काम आने वाला है.... क्योंकि वह इस बात को लेकर बहुत परेशान थी कि उनके पास आजकल कोई काम नहीं है...। वह मेरी एक बात पर बहुत मायूस हो गईं कि उनकी luck line बहुत अच्छी है.. वह कहने लगी कि ’मैं बिल्कुल भी lucky नहीं हूँ... मैंने बहुत संघर्ष किया है.. अब इस उम्र में मैं अकेली हूँ.. कोई आगे-पीछे नहीं है.. अपना कोई घर भी नहीं.... बहुत ज़्यादा महत करती हूँ तो एक कमिश्न मिल जाता है संगीत बनाने का.... हर महीने अपना किराया देने के लिए उठा-पटक करनी पड़ती है....” मैं स्तब्ध रह गया। मैंने उनसे कहा कि मैं एक fraud palm reader हूँ... पर वह अपनी गंभीरता पर बने रही,,,। उन्होंने कहा कि ’एक अर्टिस्ट का retirement कितना दुखद होता है... वह retire होना चाहे तो कहाँ जाए????’ मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं था..। हम उसके बाद चुप रहे...।
अचानक अगली sorry पर सब लोग मुझसे मुखातिफ हुए....। मैं Janghae के बारे में सोच रहा था सो मेरे मुँह से एक प्रश्न और निकला कि ’हम अपने अकेलेपन का क्या करें जब वह हमें नहीं चाहिए होता है?’ मैंने कुछ समझाते हुए कहा कि यहाँ toji में सारे युवा कलाकार हैं... सभी अपने-अपने अकेलेपन में रहते हैं.. उन्हें इसकी सुंदर जगह दी गई है कि वह अपना काम पूरी तल्लीनता के साथ करें.... इस तरह का अकेलापन उम्र के साथ-साथ किसी भी कलाकार के जीवन में बढ़ता रहता है। वह जब अपना लिखा खत्म करके अपनी डेस्क से उठता है तो उसे आस-पास कोई भी दिखाई नहीं देता.. वह एक ऎसी अवस्था में पहुच जाता है जिसमें या तो वह सृजन करे अथवा अकेलेपन के जंगल में भटकता रहे। मेरी बात Janghae समझ गई थीं... वह कुछ कहने के लिए आगे आई पर उनके मुँह से कोई शब्द नहीं निकला...। उन्होंने मुझसे कहा कि ’जैसे बिना भूखा रहे भूख लिखना झूठ है ठीक वैसे ही उस अकेलेपन में घुसे बिना उसकी बात करना भी.... ।’ सभी उन्हें देखते रहे... वह थोड़ा सहम गई... फिर बिना कुछ कहे उठकर अपने कमरे में चली गई।
कुछ देर में हम सब अपने-अपने कमरों में अकेले थे...। मैं उनकी बात बहुत अच्छी तरह समझता था.. मेरे पास भी इसके कोई जवाब नहीं थे.. पर हम दोष किसे दें... उस उम्र को जिसमें हमने कलाकार बनना चुना था? या उस आदमी को जो कभी हमारे जीवन में नहीं आया जो आकर हमारी कलम हमारे हाथ से लेकर तोड़ देता?
’तुम अभी नहीं समझोगे... बाद में पचताओगे !!!’ वाली बातें मैं बहुत सालों से सुनता आया हूँ। मैने उस ’बाद...’ का भी कई बार इंतज़ार किया है जो कभी आएगा और मैं पश्चाताप करना शुरु कर दूंगा... पर फिल्हाल वह कभी दिखा नहीं....। हाँ पर.. मुझे दुख ज़रुर होता है.... जब मैं उन लोगों से मिलता हूँ... या कभी-कभी जब मैं खुद को ऎसी स्थिति में पाता हूँ... जब हमारा खालीपन एक तरह की अनंत स्पेस हमारे सामने खोल देता है और लगता है कि इससे कोई छुटकारा नहीं है...। उस वक़्त अगल बगल मेंकोई भी खड़ा नहीं दिखता..... इस अकेलेपन और खालीपन से खुद ही निपटना पड़ता है।
मैंने soo-hyeon से यह सवाल पूछा था कि ’वह अपने अकेलेपन को कैसे handle करती हैं?’ तो उसने कहा था कि... ’उसके सबसे अच्छे दोस्त वह पात्र हैं जिन्हें वह लिख रही होती है.. वह उनके साथ रहती है... उनसे बातें करती है.. उनका बहुत ख्याल रखती है...। उसे अपने secret island में घूमना बहुत अच्छा लगता है।’
मुझे उसकी बात बहुत अच्छी लगी...। हमारे अकेलेपन का मुआवज़ा क्या है? शायद वह सारे पात्र...जिन्हें हमने किसी बीहड़ में.. या घने जंगल में कहीं हमारे साथ लुका-छुपी खेलते हुए देखा था और वह उस दिन के बाद से हमारे साथ हो लिए...।

4 comments:

Pratibha Katiyar said...

यही सवाल काप्पुस ने किये थे रिल्के से. व्हाई वी राइट? इन सवालों से उलझना भी सुलझने की प्रक्रिया ही तो है.

सच है अपने अकेलेपन से खुद ही निपटना पड़ता है.

Pratibha Katiyar said...
This comment has been removed by the author.
प्रवीण पाण्डेय said...

अपने सीक्रेट आईलैण्ड में यदि खुशियाँ हैं तो दुख भी हैं।

अनुजा said...

अकेलापन....

सच में एक गहन सवाल है.....।

पर क्‍या हम एकान्‍त में अकेले होते है....।

मेरा ख्‍़याल है- भीड़ के अकेलेपन से बेहतर है एकान्‍त का अकेलापन.... जो एक अनन्‍त स्‍पेस खोल देता है.....।

हम सब जानते हैं....हम सब पूछते हैं....इस उम्‍मीद में कि शायद कोई जवाब कुछ अलग हो....।

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails

मानव

मानव

परिचय

My photo
मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल