Thursday, October 16, 2008

निर्मल वर्मा..


काफ़ी समय से अपने आप को एक कोस रहा हूँ कि मैं बहुत ही ज़्यादा समय बरबाद करता हूँ.... भीतर समय बीतते जाने का ज्वर सा भरा रहता है।और अधिक्तर यह तब ही होता है जब मैं निर्मल वर्मा, वर्जीनिया वुल्फ या काफ़्का को पढ़ रहा होता हूँ...इस बार यह काम निर्मल वर्मा ने किया। निर्मल वर्मा को दुबारा पढ़ने की इच्छा जागी थी... उनकी किताब पढ़ते हुए हमेशा हम कुछ ही देर में एक ऎसे एकांत में चले जाते हैं.... जहाँ वह हमसे फुसफुसाते हुए बात कर सकें। देर रात तक उनकी किताब पढ़ता रहा..’धुंध से उठती धुन..’। जब मैंने उस किताब को रखा... तो उसके पीछे के कवर पर निग़ाह गई... पाँच उपन्यास.... आठ निबंध... छ्ह कहानी संग्रह.... तीन यात्रा संस्मरण.... एक नाटक... और एक संभाषण/ साक्षात्कार... एवंम दो किताबें अवसानोपरांत। यह थे कुल जमा निर्मल वर्मा...। उन्हें कई सालों से लगातार पढ़ते हुए उनसे एक संबंध सा बन गया है... इस संबंध में एक अजीब सी खो जाने की पीड़ा है...। पता नहीं मैं इसे विस्तार से कह पाऊगाँ कि नहीं... उन्हें पढ़ते हुए मैं हमेशा एक अजीब सी पीड़ा महसूस करता हूँ, छूटी हुई चीज़ो की, बीच में छूट गए लोगों की, पीछे छूट गई जगहों की...। अभी इस किताब को रखते ही मैं अपने गाँव जाना चाह रहा हूँ... पीछे छूट गए लोगों से भागकर जाकर गले लगना चाहता हूँ...उनसे माफी मांगना चाहता हूँ.. और पता नहीं क्या.. क्या?
इतने भीतर जाकर निर्मल वर्मा बातें कर रहे होते हैं कि वो मुझे बार-बार उस सुर पर ले आते हैं जिससे मैं कभी-कभी भटक जाता हूँ...। वह लिखने की उस ईमांदारी पर बह रहे होते हैं कि आपको अपना सारा किया हुआ थोड़ा उथला जान पड़ता है। शायद हम सब इतने सधंन चिंतन की इच्छा मन में रखते है....अपने काम के प्रति..। उनका सारा लिखा हुआ हमेशा एक अच्छे दोस्त जैसा मेरे घर में रहता है.... जब भी विचलित होता हूँ... उन्हें पढ़ लेता हूँ।

3 comments:

जितेन्द़ भगत said...

nirmal verma मेरे भी पसंदीदा लेखक हैं। अच्‍छी बात कही।

Udan Tashtari said...

निर्मल वर्मा जी को पढ़ना मुझे भी पसंद है.

swaroop singh said...

nirmal verma was my favrate writer swaroop singh taiyab mohamad

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails

मानव

मानव

परिचय

My photo
मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल