Thursday, July 28, 2011

life is good....


जीवन बहुत सुंदर है। यह बात लिख लेना होता है। पर उसे अपने लिखे में मैं दर्ज करना भूल गया था। आज दर्ज कर रहा हूँ। जिसकी वजह एक बूढ़ा ब्रिटिश आदमी है... जो मुझे न्युयार्क की मेट्रो ट्रेन में मिला था। उसके हाथ में डायरी थी, वह कुछ लिख रहा था। मैं हर बार की तरह अपना रास्ता भटक गया था और किसी गलत मेट्रों में चढ़ चुका था। जाना कहीं ओर था और कहीं ओर ही चल पड़ा था। उस बूढ़े ब्रिटीशर ने अपना लिखना बंद करके मुझे विस्तार से समझाया कि कहाँ उतरना और कौन सी मेट्रो किस स्टेशन से पकड़ना। बाद में उसने जोड़ा कि "फिर तुम उस रास्ते पर चलने लगोगे जहाँ तुम्हें जाना है” मैंने हस कर उसकी इस बात का स्वागत किया... उसे धन्यवाद दिया और उसके लेखन में बाधा पहुंचाने के लिए माफी मांगी। मैं उसके बगल में बैठ गया। गलत रास्ते पर चलने की असहजता पूरे शरीर में थी सो मैं ठीक से बैठ नहीं पा रहा था। उसने धीरे से पूछा क्या करते हो? यूं मैं लेखक हूँ कहने से कतराता हूँ पर चूंकि वह कुछ लिख रहा था इस बात से मुझे बल मिला और मैं बड़े अभिमान से कहा कि मै लेखक हूँ। फिर उसने पूछा कि ’How is life?’ मैं बिना झिझक जवाब दिया कि ’life is good.. very good.’ मेरी बात पर वह खुश हो गया और उसने कहा कि क्या मैंने यह बात लिखी है? मैंने पूछा कौन सी बात? उसने कहा कि ’life is good’ वाली बात। मैंने ना में सिर हिला दिया। वह कहने लगा कि... ”मैं जब भी अपनी पुरानी डायरीज़ पढ़ता हूँ तो मुझे सिर्फ पीड़ा, अवसाद और ग्लानी के पन्नों से भरी हुई वह दिखतीं हैं। फिर मुझे याद आया कि जब भी जीवन में मैं किसी भी प्रकार के डिप्रेशन से गुज़र रहा होता था तो मुझे अपनी डायरी याद आती थी और मैं उसके पन्ने के पन्ने गूद डालता था। अब इस उम्र में आकर जब अपनी डायरी पढ़ता हूँ तो लगता कि कितना पीड़ित जीवन जीया है मैंने... जबकि यह सही नहीं है.. मैं उन क्षणों को दर्ज़ करना ही भूल गया था जब मैं कहा था कि ’life is good.’ इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि इस बात को अभी इसी वक़्त लिख डालों...।”
Life is good… मैंने मेट्रो से उतरा और, उसके कहे अनुसार, दूसरी वाली मेट्रो में बैठ गया जो मुझे वहाँ ले जा रही थी जहाँ मुझे जाना था। कितने ही तरह के लोगों से घिरा हुआ था मैं... सभी अपनी किताबों, अपने संगीत और अपनी निजता में व्यस्त थे। कोई सीधे किसी से भी आँखें नहीं मिलाना चाहता था। मैंने अपनी डायरी निकाली और लिखा.. life is good… पर उस पर भी मुझे उस वाक़्य की संपूर्णता का एहसास नहीं हुआ... मैंने कुछ बड़े अक्षरों में लिखा .... LIFE IS GOOD… तब भी कुछ अधूरापन था। तभी मैंने धीरे से, खुद से, खुद के लिए फुसफुसाया life is good… और मुझे अच्छा लगा। जब मेरा स्टेशन आने वाला था। मैंने अपनी डायरी को वापिस बेंग़ में रखा... और खड़े होकर एक अंग्ड़ाई लेकर चिल्ला दिया.. LIFE IS GOOD. अगल बगल बैठे सभी लोग अपनी निजता से निकलकर मेरी तरफ देखने लगे... मैं हल्की झेंप के साथ मुस्कुरा दिया... सभी मुझे देखकर मुस्कुराने लगे।

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails

मानव

मानव

परिचय

My photo
मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल