Monday, November 23, 2015
वह क्षण....
कल शाम ज़ोरों की भूख लगी। मैंने फ्रिज से अंड़े, कुछ बचा हुआ चावल निकाला, एक प्याज़ हरी मिर्च काटी और egg fried rice सा कुछ बनाने लगा। Thailand से कुछ प्रिमिक्स कॉफी लाया था सो बगल में एक कप पानी भी रख दिया। तभी, इस व्यस्तता के बीच वह हुआ... किचिन की खिड़की से सूरज की रोशनी भीतर आ रही थी... सामने के पेड़ पर गिलहरी टकटकी बांधे इसी तरफ देख रही थी.. ऊपर से एक प्लेन जाने की ज़ोर की आवाज़ हुई और सब कुछ अचानक से आनंदमय हो गया... लगा कि यह सब कितना खूबसूरत है। यह अकेली ख़ाली दौपहरें... पीछे रफ़ी के नग़में... दूर से आती हुई बहुत सारी चिड़ियाओं की आवाज़े। अकेले रहने के बड़े सुख हैं... यह बहुत कुछ वैसा ही है जैसे कोई बच्चा जब अपनी शुरु-शुरु की संगीत की कक्षा में वायलन या सितार पर कोई बहुत कठिन राग़ शुरु करता है... अधिकतर सब कुछ असाघ्य और कठिन लगता है.. सारे सुर भी छितरे-छितरे चीख़ते दिखते हैं... पर उन्हीं दिनों में एक दिन वह क्षण अचानक आता है जब एक सटीक सुर लगता है.. और उस बच्चे को वह सुनाई देता है... पहली बार.. वह धुन.. धुंध से उठती हुई सी। वह उसके शरीर के भीतर से ही कहीं उठ रही थी... उसे आश्चर्य होता है कि वह उसके भीतर ही कहीं छुपी बैठी थी... उंगलियां उसके बस में नहीं होती.. उसकी फटी हुई आँखें, सामने तेज़ी से गुज़रे हुए सुर पकड़ रही होती हैं। इस क्षण की मुस्कुराहट सुबह की चाय तक क़ायम है। मुझे लगा इसे लिख लेना चाहिए.. कभी जब फिर सुर भटक रहे होंगे.. जीवन कठिन लम्हों में दिखेगा.. तब इन दौपहरों को फिर से पढ़ लेंगें। फिर एक गहरी सांस लेंगें... फिर प्रयास करेंगें.. सुर भीतर ही है.. वह सटीक सुर वाला क्षण फिर आएगा.... फिर आंखें फटेगीं.. फिर से मुस्कुराहट कई सुबह की चाय को बना देंगीं।
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मानव
परिचय
- मानव
- मेरा कोई स्वार्थ नहीं, न किसी से बैर, न मित्रता। प्रत्येक 'तुम्हारे' के लिए, हर 'उसकी' सेवा करता। मैं हूँ जैसे- चौराहे के किनारे पेड़ के तने से उदासीन वैज्ञानिक सा लेटर-बाक्स लटका। -विपिन कुमार अग्रवाल
17 comments:
शानदार आलेख की प्रस्तुति।
हम्म्म। यहीं पढ़ने का सुख है भीड़ में कुछ खो जाता है. शुक्रिया।
Lovely!
thanx for sharing sir. loved it.
बहुत सुन्दर ।
बहुत सुन्दर ।
इंतज़ार बना रहता है ऐसे क्षणों का... इसी इंतज़ार में ज़िन्दगी गुंथी होती है।
Thik tumhare piche padha.... bahut Dino baad aisa kuch padhne ko mila.. isse pahle gunaho ka devta "dharmveer Bhart" ne dil me jagah bnai thi.. aaj bahut Dino baad "thik tumhare piche"ne..
Likhne ka Sauk mujhe bhi hai, pr pata nhi ab man kr raha Abhi sirf padhu, or padhu......
Thik tumhare piche padha.... bahut Dino baad aisa kuch padhne ko mila.. isse pahle gunaho ka devta "dharmveer Bhart" ne dil me jagah bnai thi.. aaj bahut Dino baad "thik tumhare piche"ne..
Likhne ka Sauk mujhe bhi hai, pr pata nhi ab man kr raha Abhi sirf padhu, or padhu......
book fair me aapki 'prem kabootar'haanth lagi. padhkar bahut maza aaya.
क्या कहूं!!! आज बस जी भर कर पढ़ लेना चाहता हूँ आपको।जिन्दगी रही तो कभी कुछ कहूंगा।
बहुत उमदा 💐
आज आपकी किताब पढ़ी' ठीक तुम्हारे पीछे'एक बार ही में पूरी।मन की कई परतें खुल गई।बहुत सी जगहों पर लगा ये मैं हूं।
मैंने भी पढ़ी ' ठीक तुम्हारे पीछे ' . सब की सब विचलित करने वाली बातें ! रहा नहीं गया तो आपका Facebook page और वहाँ से आपका यह ब्लोग ढूँढ निकाला. कुछ चीज़ें पढ़ीं, कुछ अब पढ़ूँगा . सभी अत्यंत मार्मिक !
एक विनम्र सुझाव है. आप जैसे संवेदनशील कलाकार को स्व. भगवत रावत की कविताएँ पढ़नी चाहिये, बल्कि पढ़नी ही चाहिये ( यदि अब तक न पढ़ीं हों तो ! बड़बोलेपन के लिए क्षमा ! )
आप अगर चाहें तो मैं कहीं से इंतज़ाम करके उनकी कुछ किताबें आपको भेज भी सकता हुँ . वे मेरे अच्छे मित्र थे. आप उन्हें पढ़ कर निराश नहीं होंगे, मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हुँ . बल्कि यूँ कहना उचित होगा कि मेरा आग्रह है कि आप जैसे लोगों को उन्हें पढ़ना ही चाहिये .
मेरा ईमेल Bhagwan.thavrani@gmail.com है और मोबाईल नं 9898538854 .
धन्यवाद .
- भगवान थावराणी
राजकोट
Bahut hi sunder likha hai aapne,sir. Yaadein tazaa ho gayin. Wo puraane Rafi- Kishore ke nagme, wo gunguni dhoop, wo pahaadi taza Hawa....bahut saari yaadein tazaa kar di aapne. Shukriya bahut bahut Manav sir
chai chor di???
बहुत सुंदर
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